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ग़ज़ल
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चश्मक मिरी वहशत पे है क्या हज़रत-ए-नासेह
तर्ज़-ए-निगह-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर बा-अदब यूँ हज़रत-ए-नासेह से मिलता हूँ
मुरीद-ए-ख़ास जैसे मुर्शिद-ए-कामिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बे-सर्फ़ा ही गुज़रती है हो गरचे उम्र-ए-ख़िज़्र
हज़रत भी कल कहेंगे कि हम क्या किया किए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हज़रत-ए-इश्क़ के मकतब में है ता'लीम कुछ और
याँ लिक्खा याद रहे और न पढ़ा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद