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ग़ज़ल
किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार
सभी का चाक गिरेबाँ है देखिए क्या हो
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
सुब्ह को निकला था गरचे कर्र-ओ-फ़र से आफ़्ताब
मुँह फिराया हो ख़जिल उस इश्वा-गर से आफ़्ताब
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
मिरी बे-कसी पे तिरी नज़र न पड़ी जब ऐ बुत-ए-इश्वा-गर
वो जो तेरा अहद-ए-शबाब था सो वो ऐन जोश-ए-बहार था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हैं तेरी इश्वा-गरी के ये मुख़्तलिफ़ पहलू
कलीसा क्या है हरम क्या है बुत-कदा क्या है
नज़ीर मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
न खाएँगे कभी दुनिया के माल-ओ-ज़र का फ़रेब
जो खा चुके हैं तिरी चश्म-ए-इश्वा-गर का फ़रेब
वली काकोरवी
ग़ज़ल
रंग-ए-शिकस्त क्यूँ न हो हाल-ए-उमीद-वार-ए-शब
तू ही तो इश्वा-गर हुआ बाइ'स-ए-इंतिशार-ए-शब