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ग़ज़ल
दुखों का कोई भी इस्तिआ'रा नहीं है मुमकिन
दुखों का हर इस्तिआ'रा दुख है हमारा दुख है
आजिज़ कमाल राना
ग़ज़ल
कभी न कहता था दिल हमारा कि आँसुओं को लिखें सितारा
जुदाइयों की कसक से पहले ये इस्तिआरा ही दूसरा था
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
हम तो कहते हैं वो भी जले आग में दर्द के राग में
कोई तश्बीह न इस्तिआ'रा नहीं वो हमारा नहीं
फ़ाख़िरा बतूल
ग़ज़ल
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है