आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ixA8"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ixa8"
ग़ज़ल
'फ़िराक़' अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
'मीर' के मानिंद अक्सर ज़ीस्त करता था 'फ़राज़'
था तो वो दीवाना सा शा'इर मगर अच्छा लगा