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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-ग़म से लाख अपनी जान पर बन आए है
हाँ मगर ये इज़्ज़त-ए-सादात तो रह जाए है
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ये जो कहा कि पास-ए-इश्क़ हुस्न को कुछ तो चाहिए
दस्त-ए-करम ब-दोश-ए-ग़ैर यार ने रख दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
मैं बर्ग-ए-गुल से करूँगा मुक़ाबला उस का
सुना दो जा के ये क़ातिल को फ़ैसला मेरा
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
उन की बाँहों के हल्क़े में इश्क़ बना है पीर-ए-तरीक़
अब ऐसे में बताओ यारो किस जा कुफ़्र किधर ईमान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ख़ुशियाँ जा बैठीं कहीं ऊँची सी इक टहनी पर
दिल के बहलाने को इक लफ़्ज़-ए-क़ज़ा रक्खा है
इब्न-ए-उम्मीद
ग़ज़ल
मर चुका मैं तो नहीं उस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे ब'अद
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मरता हूँ और जा नहीं सकता सू-ए-अदम
मुझ ना-तवाँ को तौक़-ओ-सलासिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बर्ग-ए-हिना ऊपर लिखो अहवाल-ए-दिल मिरा
शायद कि जा लगे वो किसी मीरज़ा के हाथ
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
मुतरिब बचों ने शैख़ को टंगिया लिया तमाम
ली वक़्त-ए-जा-ए-ख़िलअ'त-ए-इनआ'म दोश पर