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ग़ज़ल
जले तो साथ जलेंगी ये झाड़ियाँ 'इज़हार'
किसी के शहर में तो दर्द यूँ न बटता था
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
दरून-ए-शहर-ए-जेहल अगर जलेंगी हक़ की मिशअलें
तो ख़्वाब-ख़ुर्दा साअ'तो तुम्हें मलाल आएगा
असलम हनीफ़
ग़ज़ल
जुदाई में जलेगा तेरी मिस्ल-ए-शम्अ' दिल मेरा
अगर की बत्तियाँ बन कर जलेंगी हड्डियाँ मेरी
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक