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ग़ज़ल
नज़्म-ए-मय-खाना पे आ जाए न इल्ज़ाम कहीं
आज साक़ी है कहीं रिंद कहीं जाम कहीं
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
वो जोश और न वो बाक़ी है वलवला दिल का
ख़ुदा ही जाने कि क्या है मोआ'मला दिल का
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
सुनता जो है कोई मिरे ग़ुंचा-दहन की बात
भाती नहीं है उस को किसी गुल-बदन की बात
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
क़त्ल-गह में जब किसी सफ़्फ़ाक का ख़ंजर उठा
वास्ते ताज़ीम के तन से हमारा सर उठा
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
जब दाँत खोल कर लब-ए-साहिल वो हँस पड़े
दरिया में मारे शर्म के गौहर पलट गया
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले
अर्श-ए-आज़म के ये नाले हैं बुलाने वाले