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ग़ज़ल
ज़र-ओ-माल-ओ-जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ
कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
सुख़न क्या कह नहीं सकते कि जूया हूँ जवाहिर के
जिगर क्या हम नहीं रखते कि खोदें जा के मादन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो हँसते हैं तो खुलता है जवाहिर-ख़ाना-ए-क़ुदरत
इधर लाल और उधर नीलम इधर मर्जां उधर मोती
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सोना रूपा सीम-ओ-जवाहिर सब्र ओ दिल ओ दीं होश-ओ-क़रार
आँख उठा कर देखते ही एक आन में सब रखवा लेगी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
है ज़ात-ए-हक़ जवाहिर ओ अग़राज़ से बरी
तश्बीह क्या है उस को वजूद ओ 'अदम के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
यार जब पहने जवाहिर कर दे ऐ दिल जी निसार
जल चुक ऐ परवाने ये रंगीं चराग़ाँ फिर कहाँ
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
हर एक जवाहिर बेश-बहा चमका तो ये पत्थर कहने लगा
जो संग तिरा वो संग मिरा तू और नहीं मैं और नहीं
शाद लखनवी
ग़ज़ल
वाँ नज़र आया न हरगिज़ पारा-ए-संग-ए-सियाह
जिस जगह लाल-ओ-गुहर से पुर जवाहिर-ख़ाना था
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ज़माना उन पे 'यासिर' नाग की मानिंद बैठा है
मुझे मेरे जवाहिर मेरे गंजीने नहीं देता