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ग़ज़ल
तेज़ हो जाता है ख़ुशबू का सफ़र शाम के बाद
फूल शहरों में भी खिलते हैं मगर शाम के बाद
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
ज़ोफ़ से ऐ गिर्या कुछ बाक़ी मिरे तन में नहीं
रंग हो कर उड़ गया जो ख़ूँ कि दामन में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं
लेकिन हवा के रहम-ओ-करम पर नहीं हूँ मैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
तीन मोहल्लों में उन जैसी क़द काठी का कोई न था
अच्छे-ख़ासे ऊँचे पूरे क़द-आवर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
तारीफ़ तिरे क़द की अलिफ़-वार सिरीजन
जा सर्व-ए-गुलिस्ताँ कूँ ख़ुश-अल्हाँ सूँ कहूँगा
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-सनअत-ए-क़द-आवरी का मौसम है
सुबुक हुए पे भी निकला है क़द्द-ओ-क़ामत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी
सिला इन की कद-ओ-काविश का है सीनों की बे-नूरी