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ग़ज़ल
मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
मुर्ग़ान-ए-क़फ़स को फूलों ने ऐ 'शाद' ये कहला भेजा है
आ जाओ जो तुम को आना हो ऐसे में अभी शादाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ता-कुजा ज़ब्त-ए-मोहब्बत ता-कुजा दर्द-ए-फ़िराक़
रहम कर मुझ पर कि तेरा राज़ कहलाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल की बात छुपानी मुश्किल लेकिन ख़ूब छुपाते हो
बन में दाना शहर के अंदर दीवाने कहलाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़ुद काटेंगे अपनी मुश्किल ख़ुद पाएँगे अपनी मंज़िल
राहज़नों से भी बद-तर हैं राह-नुमा कहलाने वाले
हबीब जालिब
ग़ज़ल
दिलबर हैं अब दिल के मालिक ये भी एक ज़माना है
दिल वाले कहलाते थे हम वो भी एक ज़माना था