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ग़ज़ल
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
'वसीम' उस से कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता