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ग़ज़ल
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
जितनी सुब्हें हो चुकी हैं आज सब की शाम है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी
जगा देती है दुनिया को सदा-ए-अल-अमाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो सालिक है तो अपने नफ़्स का इरफ़ान पैदा कर
हक़ीक़त तेरी क्या है पहले ये पहचान पैदा कर
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है
चमन में रात भर बनती है और दिन भर बरसती है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गुल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की कियारी है
परी भी अब तो बाज़ी हुस्न में समधन से मारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़ब्त से ना-आश्ना हम सब्र से बेगाना हम
क्यूँ किसी से माँगते जाएँ चराग़-ए-ख़ाना हम
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
जिस में थे जल्वे तिरे वो आइना क्या हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ये हस्ब-ए-अक़्ल तो कोई नहीं सामान मिलने का
मगर दुनिया से ले जावेंगे हम अरमान मिलने का