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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
यूँ तो कहने को सभी कहते हैं यूँ है यूँ है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
पूछ न उन निगाहों की तुर्फ़ा करिश्मा-साज़ियाँ
फ़ित्ने सुला के रह गईं फ़ित्ने जगा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मैं कहाँ हूँ तू कहाँ है ये मकाँ कि ला-मकाँ है
ये जहाँ मिरा जहाँ है कि तिरी करिश्मा-साज़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़हे करिश्मा कि यूँ दे रक्खा है हम को फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है क्या कहिए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला
शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये ताज़ा-कारी है तर्ज़-ए-एहसास का करिश्मा
मिरे लुग़त में तो लफ़्ज़ कोई नया नहीं है
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
तेरे बख़्शे हुए इक ग़म का करिश्मा है कि अब
जो भी ग़म हो मिरे मेयार से कम होता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
करिश्मा ये भी है ऐ बे-ख़बर इफ़्लास-ए-क़ौमी का
तलाश-ए-रिज़्क़ में अहल-ए-हुनर का दर-ब-दर जाना