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ग़ज़ल
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मह-ओ-साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ
तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है
ग़म-ए-दिल मिरे रफ़ीक़ो ग़म-ए-राएगाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
उस की गली से मक़्तल-ए-जाँ तक मस्जिद से मय-ख़ाने तक
उलझन प्यास ख़लिश तन्हाई कर्ब-ज़दा लम्हात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
अगर दम भर भी मिट जाती ख़लिश ख़ार-ए-तमन्ना की
दिल-ए-हसरत-तलब को अपनी हस्ती से गिला होता