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ग़ज़ल
ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे
समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जब तलक साँस है भूक है प्यास है ये ही इतिहास है
रख के काँधे पे हल खेत की ओर चल जो हुआ सो हुआ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
चहकते घर महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ
जिन्हें हम छोड़ आए उन सभी को जीते रहते है
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
बहते पानी दुख-सुख बाँटें पेड़ बड़े बूढ़ों जैसे
बच्चों की आहट सुनते ही खेत लहकने लगते थे