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ग़ज़ल
जब भी कोई तख़्त सजा है मेरा तेरा ख़ून बहा है
दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
नहीं सब्र साक़िया ला भी दे क़दह-ए-बहार उठा भी दे
अभी सिन है ला के पिला भी दे कि हमेशा कौन जवाँ रहा
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
नहीं देखे आज तक अब्र में मुझे अब दिखाने को अख़्तर आ
शाह नसीर
ग़ज़ल
तेरी गली में जो मिला उस से पता पूछा तिरा
सब तुझ से थे ना-आश्ना पर सब में था शोहरा तिरा
वहीद अख़्तर
ग़ज़ल
क्यूँ शान-ए-हुस्न आइना-ख़ाने में जा के देख
'अज़हर' को अपने हुस्न का मज़हर बना के देख
अज़हर लखनवी
ग़ज़ल
बहार-ए-लाला-ओ-गुल हो कि हो रंग-ए-शफ़क़ 'अफ़्क़र'
रहेंगी हश्र तक ख़ून-ए-वफ़ा की सुर्ख़ियाँ बाक़ी
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
गहरी नज़र वालों में 'अख़्तर' रौशन है पहचान अलग
फिर भी क्यूँ है आप की इज़्ज़त बाहर कुछ और अंदर कुछ
कलीम अख़्तर
ग़ज़ल
बशीर दादा
ग़ज़ल
बोल न 'अख़्तर' अब कभी हट थी ये एक शख़्स की
तरह जो सब से की बुरी ये तो बता तू कौन है
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कुल्लो-शयइन यरजिउ के खुल गए मा'नी मुझे
मैं मुसाफ़िर जिस घड़ी मुल्क-ए-बक़ा का हो गया