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ग़ज़ल
सुरूर दिल में न आँखों में ख़्वाब बाक़ी है
शब-ए-फ़िराक़ फ़क़त इज़्तिराब बाक़ी है
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं
उन्हें का हक़ है फूलों पर जो अँगारों पे चलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
शाइ'री ज़ीस्त के ज़ख़्मों की तलाफ़ी तो नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
लब-ए-साहिल समुंदर की फ़रावानी से मर जाऊँ
मुझे वो प्यास है शायद कि मैं पानी से मर जाऊँ
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
याद-ए-ग़ज़ाल-चश्माँ ज़िक्र-ए-समन-अज़ाराँ
जब चाहा कर लिया है कुंज-ए-क़फ़स बहाराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं
जो वक़्त लिख नहीं पाया वो बाब बाक़ी हैं
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
ये लम्हा ज़ीस्त का है बस आख़िरी है और मैं हूँ
हर एक सम्त से अब वापसी है और मैं हूँ