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ग़ज़ल
चाँद की किरनों की चादर ने सब के रूप छुपाए हैं
आँखों वाले सब ही जा कर नगरी से लौट आए हैं
माजिद-अल-बाक़री
ग़ज़ल
उस को दावा बहुत मीठे-पन का 'वसी' चाँदनी से कहो
उस की किरनों से कितने ही घर जल गए चाँद को क्या ख़बर
वसी शाह
ग़ज़ल
तेरे रूप में या चंदा की किरनें सेज पे सोती हैं
चाँदी की शीतल थाली में या जूही का गजरा है