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ग़ज़ल
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम
देता हूँ तुझ को तख़्त-ए-सुलैमान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा
लो हम भी न बोलेंगे ख़ुदा की क़सम अच्छा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
कि पड़ा है आज ख़ुम में क़दह-ए-शराब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया
ख़िश्त-ए-ख़ुम-ख़ाना है याँ अपने तो सर का तकिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दिल-ए-सितम-ज़दा बेताबियों ने लूट लिया
हमारे क़िबले को वहहाबियों ने लूट लिया