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ग़ज़ल
घर की ज़ीनत घर वालों की इज़्ज़त प्यार से है
लैंड-करुज़र पोर्शे से घर-बार बदलते नईं
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वो लड़ कर भी सो जाए तो उस का माथा चूमूँ मैं
उस से मोहब्बत एक तरफ़ है उस से झगड़ा एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं
ज़िया मज़कूर
ग़ज़ल
मैं कितने रंगों में ढलता कब तक ख़ुद से लड़ पाता
जीवन एक सफ़र था जिस ने रोज़ नया इक मोड़ लिया