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ग़ज़ल
अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है
रात है लेकिन मिरे लब पर सहर की बात है
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
मैं कहाँ हूँ कुछ बता दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
फिर सदा अपनी सुना दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी
न छूटे मुझ से लंदन में भी आदाब-ए-सहर-ख़ेज़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप
तू अपने अंदाज़ में चुप है मैं अपने अंदाज़ में चुप
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
किसी की आँख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता
मुंडेरों से चराग़ों को बुझा कर कुछ नहीं मिलता