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ग़ज़ल
हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नमाज़ें मुस्तक़िल पहचान बन जाती है चेहरों की
तिलक जिस तरह माथे पर कोई हिन्दू लगाता है
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
अब तो उस सूने माथे पर कोरे-पन की चादर है
अम्मा जी की सारी सज-धज सब ज़ेवर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से अजब तिरा दर्द का नाता देख हमें मत भूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये माथे पर पसीने की जो लर्ज़िश तुम ने देखी
ये इक चेहरे पे ला-हासिल मशक़्क़त रो रही है
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
नन्हे होंटों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे