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ग़ज़ल
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरी
तसव्वुर में भी आ सकतीं नहीं मजबूरियाँ मेरी
फ़य्याज़ हाशमी
ग़ज़ल
दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिल अक्सर
उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
एक सी हैं अब तो हुस्न-ओ-'इश्क़ की मजबूरियाँ
हम हों या तुम हो वो अहद-ए-बा-फ़राग़त भी तो हो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मिरी मजबूरियाँ देखो कि यकजाई के पैकर में
किसी बिखरे हुए एहसास में सिमटा हुआ हूँ मैं