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ग़ज़ल
तेरे ख़त में बिल-मुशाफ़ा हम-कलामी के मज़े
तर्ज़ है मक्तूब-ए-ग़ालिब में यही तहरीर का
मानी नागपुरी
ग़ज़ल
मकतब-ए-इश्क़ से वाबस्ता हूँ काफ़ी है मुझे
दाद-ए-'ग़ालिब' सनद-ए-'मीर' नहीं चाहती मैं
नादिया अंबर लोधी
ग़ज़ल
हामी भी न थे मुंकिर-ए-'ग़ालिब' भी नहीं थे
हम अहल-ए-तज़बज़ुब किसी जानिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की
फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
खो न जा इस सहर ओ शाम में ऐ साहिब-ए-होश
इक जहाँ और भी है जिस में न फ़र्दा है न दोश
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
क्या तुम्हीं ख़ूब बने और कोई ख़ूब न था