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ग़ज़ल
है मिरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील
जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आप के ग़म ने तन-ए-ज़ार में छोड़ा क्या है
मलक-उल-मौत का ये मुझ से तक़ाज़ा क्या है