aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "manzar"
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहींकि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटताभीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगाघर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा
एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरतउम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है
हमारे शहर के मंज़र न देख पाएँगेयहाँ के लोग तो आँखों में ख़्वाब रखते हैं
ज़मीं का आख़िरी मंज़र दिखाई देने लगामैं देखता हुआ पत्थर दिखाई देने लगा
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकतामगर ये बात ज़मीं से तो कह नहीं सकता
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होतामेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता
नज़र पर बार हो जाते हैं मंज़रजहाँ रहियो वहाँ अक्सर न रहियो
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिएकि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश करजो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर
एक नज़र में मंज़र कब खुलते हैं दोस्ततू ने देखा भी है तो क्या देखा है
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रबआज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना
ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगेबहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
भीगती आँखों के मंज़र नहीं देखे जातेहम से अब इतने समुंदर नहीं देखे जाते
आख़िर 'ज़फ़र' हुआ हूँ मंज़र से ख़ुद ही ग़ाएबउस्लूब-ए-ख़ास अपना मैं आम करते करते
आँखें मंज़र हुईं कान नग़्मा हुएघर के अंदाज़ ही घर से जाते रहे
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता हैकुछ दिन शहर में घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है
रातों में इक सूरज भी दिख जाएगाहर मंज़र को उल्टा कर के देखा जाए
हवा को बहुत सर-कशी का नशा हैमगर ये न भूले दिया भी दिया है
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