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ग़ज़ल
उस मर्द-ए-ख़ुदा-मस्त की क्या बात है 'अकबर'
जिस को न रहा कुछ भी बजुज़ याद-ए-ख़ुदा याद
जलालुद्दीन अकबर
ग़ज़ल
होगा ऐसा भी कोई मर्द-ए-ख़ुदा मेरे बाद
देगा दुनिया को जो पैग़ाम-ए-वफ़ा मेरे बाद
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
ग़ज़ल
ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग
रस्म-ए-दुआ ये है कि दुआ ले दुआ न माँग
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
'रसा' को सब ने समझाया मगर समझा न कुछ ज़ालिम
हुए मजबूर उस मर्द-ए-ख़ुदा के जानने वाले
रसा रामपुरी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं
थोड़ा सा इख़्तिलाफ़ है मर्द-ए-ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
मय-ए-अंगूर की करता है मज़म्मत वाइज़
इस की लज़्ज़त को तू ऐ मर्द-ए-ख़ुदा क्या जाने
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
मय-ए-अंगूर की करता है मज़म्मत वाइज़
उस की लज़्ज़त को तू ऐ मर्द-ए-ख़ुदा क्या जाने