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ग़ज़ल
छानता है ख़ाक क्या तू घर बनाने के लिए
फ़िक्र रहने की न कर आया है जाने के लिए
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
गुम्बद-ए-मदफ़न है या है आसमाँ बाला-ए-सर
ये मकीं रखते हैं सब अपने मकाँ बाला-ए-सर
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
'करामत'-ए-हज़ीं फ़रार हो के हाल-ए-ज़ार से
गुज़िश्ता अहद से मिला तो वो लगा है हाल सा