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ग़ज़ल
पढ़ लिया आँखों के ख़ामे से लिखी तहरीर को
मस्लक-ए-उश्शाक़ शाहिद है कि मैं जाहिल नहीं
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
जाने क्यों तीर-ए-सितम चलते हैं हम पर 'बेबाक'
अपना मस्लक तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
हो मुक़ाबिल नाला-ए-दर्द-ए-दिल-ए-उश्शाक़ के
बाग़बाँ बुलबुल को ऐसा भी तराना याद है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहीं
मस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
अल्लह अल्लह मस्लक-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत ऐ 'अतीक़'
आह कोई भी करे लेकिन तड़प जाता हूँ मैं
अतीक़ अहमद अतीक़
ग़ज़ल
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदा-सरी
चाक-ए-दिल और भी हैं चाक-ए-क़बा और भी हैं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
लश्कर-ए-क़ल्ब-ए-सफ़-ए-उश्शाक़ में है ग़लग़ला
यक्का-ताज़-ए-आह कूँ किस ने किया है ना-रसीद
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हम तो बर्बादी का सामान किए बैठे थे
मस्लक-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में यहाँ हद है हद है