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ग़ज़ल
'हाफ़िज़' ओ 'ग़ालिब' ओ 'इक़बाल' के अफ़्कार-ए-जमील
माया-ए-शे'र-ओ-सुख़न ग़ाज़ा-ए-ज़ेबा-ए-ग़ज़ल
बशीर फ़ारूक़
ग़ज़ल
निगह रख दी ज़बाँ रख दी मताअ'-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ रख दी
मिटा कर अपनी हस्ती पेश-ए-संग-ए-आस्ताँ रख दी