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ग़ज़ल
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं
सरों की फ़स्ल जब उतरी थी तब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई
मैं पयम्बर तो नहीं हूँ कि बचा ले मुझे कोई