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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
एक साथ के चलने वालों में भी है अलगाव बहुत
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
ग़म-ए-ज़िंदगी के फ़िशार में तिरी आरज़ू के ग़ुबार में
इसी बे-हिसी के हिसार में मुझे ज़िंदगी की तलाश है
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
न कर फ़िक्र-ए-ख़िज़ाब ऐ शैख़ तू पीरी में जाने दे
जवाँ होना नहीं मुमकिन सियह-रूई से क्या हासिल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
दीवानों के ख़्वाब की सूरत अन-मिल और बेजोड़
अपने आप से लड़ती रातें बातें करते दिन
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
ग़म-ए-ज़िंदगी के फ़िशार में तिरी आरज़ू के ग़ुबार में
इसी बे-हिसी के हिसार में मुझे ज़िंदगी की तलाश है
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
क्या कहिए कि ख़ूबाँ ने अब हम में है क्या रखा
इन चश्म-सियाहों ने बहुतों को सुला रखा