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ग़ज़ल
ये अजब क़यामतें हैं तिरे रहगुज़र में गुज़राँ
न हुआ कि मर मिटें हम न हुआ कि जी उठें हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मिटें बेचैनियाँ आख़िर दर-ओ-दीवार की कैसे
घरों में लोग रहते हैं दिलों में घर नहीं रहता
परविंदर शोख़
ग़ज़ल
दाग़ जो अब तक अयाँ हैं वो बता कैसे मिटें
फ़ासले जो दरमियाँ हैं वो बता कैसे मिटें
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
हर किसी के नाम में तख़सीस होनी चाहिए
क्यों न ऐ 'बिस्मिल' मिटें हम ख़ंजर-ए-जल्लाद पर
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर
क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते