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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
अपनी मीरास में हैं दश्त-ओ-जबल ऐ वहशत
जा-नशीं क़ैस के हैं वारिस-ए-फ़र्हाद हैं हम