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ग़ज़ल
तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हम ने हारी है सितारो तुम तो सो जाओ
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छेड़ूँ
या तिरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी
फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू
ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़ इसे आप से कोई काम है