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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
बहुत हुआ तो मिरी मोहब्बत तिरी गली तक सफ़र करेगी
गुलाब जैसी हिकायतों को इधर उधर मो'तबर करेगी
ख़ुमार कुरैशी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-जुनूँ के बाब में हम ने जो भी कहानी लिखी है
मंज़र-नामा जैसा भी हो बात हमारी अपनी है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
न कुछ तकरार तुम को है न कुछ शिकवा हमारा है
ये दिल क्या चीज़ है अब जान तक देना गवारा है
मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़