aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mohar-e-numuu"
अशआ'र में जो मेरे किरन जुस्तुजू की हैमीरास ये भी तेरे ही मोहर-ए-नुमू की है
मोहर-ए-सुकूत-ए-लब पे है बहके हुए क़दमऐ बे-ख़ुदी फिर आज किधर जा रहा हूँ मैं
खुलता है हर इक गुंचा-ए-नौ-जोश-ए-नुमू सेये सच है मगर लम्स-ए-हवा भी है कोई चीज़
लब पे मोहर-ए-सुकूत है लेकिनमिल गई है नज़र को गोयाई
शो'ला-ए-ज़ौक़-ए-नुमू बर्फ़ाब लिखकश्ती-ए-दिल हो गई ग़र्क़ाब लिख
मतला-ए-सुब्ह-ए-नुमू साफ़ तो होगा 'आज़र'अब्र छाया हुआ छटने के लिए होता है
लब पे मोहर-ए-सुकूत भी तो नहींकर गया कौन बे-सदा मुझ को
आओ कि मुतमइन करें अपने ज़मीर कोमोहर-ए-सुकूत तोड़ दें लब पर लगी हुई
ये कहना मसनद-ए-शाख़-ए-नुमू पे था जो कभीवो फूल सूरत-ए-ख़ुश्बू बिखर गया कहना
सच के कहने से अगर जी का ज़ियाँ होता हैसच बहर-हाल है सच मोहर-ए-दहाँ क्या होगा
जो भी रखते हैं यहाँ क़ुव्वत-ए-इज़हार-ए-नुमूबीज वो सख़्त चटानों पे भी जम जाते हैं
झूट ठहरा है 'मुनव्वर' उन रुतों के दरमियाँख़्वाब-ए-इम्कान-ए-नुमू पैवंद-ए-जाँ देखा हुआ
सेहन-ए-चमन में ढूँड चुके हुस्न-ए-इर्तिक़ासहरा में अब तजस्सुस-ए-जोश-ए-नुमू करें
मैं किसी और सितारे पे खिलूँगी इस बारतू मिरी ख़ाक तह-ए-ख़ाक-ए-नुमू रख देना
वही हसरत वही लब और वही मोहर-ए-सुकूतशौक़ को जुरअत-ए-इज़हार कहाँ है यारो
आज टूटी है लब-ए-एहसास से मोहर-ए-सुकूतआज तन्हाई ने तलवे गुदगुदाए चल पड़ो
निगाह महव-ए-तमाशा लबों पे मोहर-ए-सुकूतमैं आइने की तरह तेरी अंजुमन में रहा
मिट्टी ज़रख़ेज़ हो या न हो दश्त कीबहर-ज़ौक़-ए-नुमू इक तमाशा लगे
उन के आगे लब-ए-इज़हार पे है मोहर-ए-सुकूतएक ख़ामोश परस्तिश का गुमाँ होता है
कभी लबों पे हैं नगमें कभी है मोहर-ए-सुकूतकभी चमन कभी सहरा बने हुए हैं हम
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