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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
कोई ऐ 'ख़ुमार' उन को मिरे शे'र नज़्र कर दे
जो मुख़ालिफ़ीन मुख़्लिस नहीं मो'तरिफ़ ग़ज़ल के
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
सँभाला होश जब हम ने तो कुछ मुख़्लिस अज़ीज़ों ने
कई चेहरे दिए और एक पत्थर की ज़बाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मुख़्लिस हो रहो टोका है किस ने तुम्हें 'अंजुम'
रफ़्तार-ए-ज़माना भी मगर ध्यान में रखना
अंजुम ख़लीक़
ग़ज़ल
मुझ से मुख़्लिस था न वाक़िफ़ मिरे जज़्बात से था
उस का रिश्ता तो फ़क़त अपने मफ़ादात से था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
तेग़-ए-ख़ालिद तेग़-ए-तारिक़ इश्क़ की ही इंतिहा है
इश्क़ मुख़्लिस सरफ़रोशी इश्क़ मैदाँ में है 'ग़ाज़ी'
इरफ़ान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
ख़ैर-ख़्वाह ओ मुख़्लिस ओ फ़िदवी जो कुछ कहिए सो हूँ
ऐब क्या है गर रहे ख़िदमत में मुझ सा आश्ना
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
दुश्मन क्यूँ ज़हमत फ़रमाएँ मेरी ख़ातिर
ख़ुद को मुख़्लिस कहने वाले ही काफ़ी हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
तल्ख़-गो हो के भी हर हाल में मुख़्लिस हूँ 'अज़ीज़'
मेरी आदत को न देखो मिरी फ़ितरत समझो
अज़ीज़ क़ादरी
ग़ज़ल
हम को हर मुख़्लिस दवा भी लगती है ख़ंजर सी अब
एक ज़ालिम की बलाएँ सर लिया करते थे हम