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ग़ज़ल
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले
कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
तेग़ मुंसिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद
बे-गुनह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
रास्ते में तुम अगर भीगे तो ख़फ़्गी मुझ पे क्यूँ
मेरे मुंसिफ़ पे ख़ता मेरी है या बरसात की
नज़ीर बनारसी
ग़ज़ल
वही मुंसिफ़ों की रिवायतें वही फ़ैसलों की इबारतें
मिरा जुर्म तो कोई और था प मिरी सज़ा कोई और है