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ग़ज़ल
हम हैं इंसान इस लिए लाज़िम है कि मुसलसल काम करें
कोई ख़ुदा तो नहीं हैं हम जो सातवें दिन आराम करें
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इज़्ज़त भी है दौलत भी पर आदमियत का नाम नहीं
हम किस को हिन्दू कहते हैं हम किस को मुसलमाँ कहते हैं
अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है मुसलसल कश्मकश है ऐ 'सुरूर'
मौत से पहले कोई आराम पा सकता नहीं
सत्यपाल कौशिक सुरूर
ग़ज़ल
ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
राह-रौ और भी थक जाता है आराम के बाद
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
बा'ज़ औक़ात मैं हँस पड़ता हूँ हँसते हँसते रोता हूँ
तेरा मेरा रिश्ता जैसे एक मुसलसल गाली थी
दानिश हयात
ग़ज़ल
इक अनजाने डर ने नींद उचक ली सब की आँखों से
कितनी ही रातों से मुसलसल बे-आराम है घर का घर
जाफ़र बलूच
ग़ज़ल
'अदू की फ़ौज सफ़-बस्ता मुसल्लह भी मुनज़्ज़म भी
मगर हम हैं अभी ग़र्क़-ए-ख़याल-ए-रज़्म-आराई
अब्दुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब
हुस्न क्या है जल्वा-आराई ब-अंदाज़-ए-हिजाब