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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ऐ मुश्त-ए-ग़ुबार-ए-तन-ए-फ़र्सूदा-ए-आशिक़
उस कू में ज़मीं-गीर है गीव अब तू हवा हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सर-बुलंदी हमें मिल सकती है लेकिन ऐ 'ग़ुबार'
आज मिल्लत के जवानों में तग-ओ-ताज़ नहीं
ग़ुबार किरतपुरी
ग़ज़ल
रहने दे मेरी ख़ाक तू उस दर पे ऐ सबा
मुश्त-ए-ग़ुबार-ए-ख़स्ता-दिलाँ मत उठाइयो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
मुहीत दौर-ए-साग़र चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम है साक़ी
ग़ुलाम-ए-चश्म-ए-मैगूँ गर्दिश-ए-अय्याम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
हम बगूले की तरह दश्त में फिरते हैं 'ग़ुबार'
जोश-ए-वहशत ने कुछ ऐसा हमें आज़ाद किया