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ग़ज़ल
अज़ाँ देते हैं बुत-ख़ाने में जा कर शान-ए-मोमिन से
हरम के नारा-ए-नाक़ूस हम ईजाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
तिरा दम भरते हैं हिन्दू अगर नाक़ूस बजता है
तुझे भी शैख़ ने प्यारे अज़ाँ दे कर पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
मोअज़्ज़िन को भी वो सुनते नहीं नाक़ूस तो क्या है
'अबस शैख़ ओ बरहमन हर तरफ़ फ़रियाद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
फिर तो यारों ने भजन गाने की खुल कर ठान ली
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ज़मज़मा साज़ का पायल की छनाके की तरह
बेहतर-अज़-शोरिश-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
कब से हूँ बस्ता-ए-नाक़ूस-ओ-मज़ामीर-ए-बुताँ
फिर भी सीने में कोई गर्म-अज़ाँ है अब तक
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
सिर्फ़ इक दिल ही वो मा'बद है वो इक मा'बद-ए-इश्क़
जिस में नाक़ूस हम-आवाज़-ए-अज़ाँ होता है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
दैर से बेहतर है काबा गर बुतों में तू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
सुकून-ए-दिल से नाक़ूस ओ अज़ाँ तक बात आ पहुँची
ख़ुदा वालों की हिम्मत से कहाँ तक बात आ पहुँची
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
सुन लेते हैं चुपके से मोअज़्ज़िन की हम ऐ शैख़
जब हाथ में नाक़ूस-ए-कलीसा नहीं होता