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ग़ज़ल
अगर ऐ नसीम-ए-सहर तिरा हो गुज़र दयार-ए-हिजाज़ में
मिरी चश्म-ए-तर का सलाम कहना हुज़ूर-ए-बंदा-नवाज़ में
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
मैं ना-तवाँ हूँ ख़ाक का परवाने की ग़ुबार
उठता हूँ रख के दोश-ए-नसीम-ए-सहर पे हाथ