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ग़ज़ल
आसमाँ पर है दिमाग़ अब नहीं मिलने के 'नसीम'
मेहरबाँ उन पे है इक रश्क-ए-क़मर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
मुमताज़ नसीम
ग़ज़ल
क्या ही ख़ुश-गो है 'नसीम' अहल-ए-सुख़न कहते हैं
बाग़-ए-हिन्द आप से मैसूर हुआ ख़ूब हुआ