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ग़ज़ल
नए इक शहर को सुब्ह-ए-सफ़र क्या ले चली मुझ को
सदाएँ दे रही है एक छोटी सी गली मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
तिरे मस्लक में क्या इतना भी समझाया नहीं जाता
फ़क़ीरों और दरवेशों से टकराया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
कि ला-मकाँ ही की चौखट है आस्ताना-ए-इश्क़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल कुछ जो सर-ए-बज़्म कहा है मैं ने
वो ये समझे हैं कि इल्ज़ाम दिया है मैं ने
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
मगर ज़ौक़-ए-जुनूँ की शो'ला-सामानी नहीं जाती
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
फ़क़त अफ़साना-ए-माज़ी को दोहराने से क्या होगा
अमल भी कर फ़रेब-ए-सर-ख़ुशी खाने से क्या होगा
माैज रामपुरी
ग़ज़ल
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
मगर ज़ौक़-ए-जुनूँ की शोला-सामानी नहीं जाती
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
निकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं
अभी तमन्ना है और दिल है अभी जवानी है और हम हैं
नूह नारवी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
क्या शोख़-ओ-शंग शय निगह-ए-शर्मगीं भी है
चिलमन से झाँकती भी है चिलमन-नशीं भी है