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ग़ज़ल
फ़लक ये जौर-ओ-सितम मुझ से ना-तवाँ के लिए
मैं ही था क्या तिरे ज़ुल्मों के इम्तिहाँ के लिए
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
यूँ उन के हसीं रुख़ पर ज़ुल्फ़ों की हर इक लट है
जैसे गुल-ए-नाज़ुक पर पत्तों का ये घूँघट है
नूर इंदौरी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
वो हसीन जल्वा-ब-दोष है कोई पर्दा है न नक़ाब है
तिरा पर्दा है तिरी पर्दगी ये हिजाब तेरा हिजाब है
ऐमन अमृतसरी
ग़ज़ल
खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का
मैं डरता हूँ कहीं पर्दा न फट जाए हक़ीक़त का
बयान मेरठी
ग़ज़ल
है ग़लत गर तिरे दाँतों को कहूँ तारे हैं
कि दहन मुसहफ़-ए-नातिक़ है ये सीपारे हैं