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ग़ज़ल
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
उस के आँगन में खुलता था शहर-ए-मुराद का दरवाज़ा
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में ले कर पल्टी मैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
उस मिट्टी का बोझ उठाते जिस्म की मिट्टी गलती थी
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
पस्ती-ए-ज़मीं से है रिफ़अत-ए-फ़लक क़ाएम
मेरी ख़स्ता-हाली से तेरी कज-कुलाही भी
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
न पाया जो गया इस बाग़ से हरगिज़ सुराग़ उस का
न पल्टी फिर सबा ईधर न फिर आई नज़र शबनम
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा
मिल के पल्टी थीं निगाहें कि धुआँ दिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया
दर्द में दिल डूब कर क़तरे से दरिया बन गया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
होती है वो शे'रों में मुनअ'किस कभी 'ए'जाज़'
मुद्दतों घुटन सी जो दिल में पलती रहती है
एजाज़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़रीद जावेद
ग़ज़ल
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
नज़र क्या कीमिया थी रंग चेहरों से उड़ा लाई