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ग़ज़ल
जिस पंछी की परवाजों में जोश-ए-जुनूँ भी शामिल हो
उस की ख़ातिर आब-ओ-दाना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
हश्र सदा है परवाजों में रूई के गाले ऊँचे पहाड़
आसमाँ इक शीशे का टुकड़ा वक़्त के शहपर से बाहर