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ग़ज़ल
जल गया परवाना गर तो क्या ख़ता है शम्अ' की
रात भर जलना जलाना उस की क़िस्मत है तो है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
वो मुझ को देख कर कुछ अपने दिल में झेंप जाते हैं
कोई परवाना जब शम-ए-सर-ए-महफ़िल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
सहर तक सब का है अंजाम जल कर ख़ाक हो जाना
बने महफ़िल में कोई शम्अ या परवाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
शम् ओ परवाना न महफ़िल में हों बाहम ज़िन्हार
शम्अ'-रू ने मुझे भेजे हैं ये परवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
न मैं दीवाना फ़रज़ाना न मैं परवाना ऐ 'अर्पित'
तअज्जुब है मुझे क्यूँकर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
है शम्अ सर के बल जो मोहब्बत में गर्म हो
परवाना अपने दिल से ये कहता है जल के चल