आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "piyo"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "piyo"
ग़ज़ल
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो
बे-ख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
ज़माने भर की कैफ़ियत सिमट आएगी साग़र में
पियो उन अँखड़ियों के नाम पर आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
पियो कि मुफ़्त लगा दी है ख़ून-ए-दिल की कशीद
गिराँ है अब के मय-ए-लाला-फ़ाम कहते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जो हुई सो हुई जाने दो मिलो बिस्मिल्लाह
जाम-ए-मय हाथ से लो मेरे पियो बिस्मिल्लाह